एन सी एफ और एस सी एफ के आलोक में उत्तराखंड की मातृभाषाओं - गढ़वाली, कुमाउनी, जौनसारी, आदि, में प्रारंभिक स्तर हेतु पुस्तक लेखन कार्यशाला- अकादमिक शोध एवं प्रशिक्षण की निदेशक ने दिए महत्वपूर्ण सुझाव -
उत्तराखंड, भारत का एक प्रमुख राज्य, अपनी सुंदर प्राकृतिक सौंदर्य, ऐतिहासिक धरोहर, और विविध सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है। इस प्राकृतिक समृद्धि के क्षेत्र में, उत्तराखंड में कई मातृभाषाएं हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं - गढ़वाली, कुमाउनी, और जौनसारी। ये भाषाएं उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और इस भूमि के लोगों की भाषा और साहित्य को समृद्धि प्रदान करती हैं। संयुक्त निदेशक आशा रानी पैन्यूली ने कार्यक्रम के शुभारंभ पर सभी प्रतिभागी लेखकों से समृद्ध साहित्य निर्माण के साथ रुचिकर शैली मे प्रस्तुतियाँ देने और गतिमान पाठ्यक्रम के अनुरूप उत्तराखण्ड की विरासत को सँजोने पर बाल दिया ।
एन सी एफ और एस सी एफ के वास्तविक स्वरूप मे आने बाद एस सी ई आर टी ने स्कूल पाठ्यक्रम मे उत्तराखंड की मातृभाषाओं - गढ़वाली, कुमाउनी, जौनसारी, आदि, को शामिल करने के लिए राज्यस्तरीय कार्यशाला का आयोजन किया । यह पहल उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों में मातृभाषाओं के लेखन का प्रोत्साहन देना एक महत्वपूर्ण कदम है। प्रारंभिक स्तर के पुस्तक लेखन कार्यशालाओं का आयोजन करना और इनमें जनसमृद्धि बढ़ाने का प्रयास करना उचित है। इस प्रयास के माध्यम से, युवा लेखकों को अपनी भाषा में सुस्तिर, संवेदनशील और नवाचारी रूप में लेखन कौशल में सुधार करने का अवसर मिलेगा।
स्कूली शिक्षा मे गढ़वाली, कुमाउनी, जौनसारी जैसी मातृभाषाओं में पुस्तक लेखन की कला को समझाने के लिए समर्थन और प्रोत्साहन प्रदान करना आवश्यक है। यह कार्यशालाएं लेखकों को उनकी रचनाओं को साझा करने, बुनियादी लेखन सामग्री को समझने, और अपने विचारों को स्पष्टता से व्यक्त करने का एक मंच प्रदान करेंगी।
इसके अलावा, इन कार्यशालाओं को बच्चों, युवाओं, और बड़ों के बीच एक सांस्कृतिक अद्यतन के रूप में भी देखा जा सकता है। ये कार्यशालाएं लोगों को उत्तराखंड की विरासत के प्रति जागरूक करेंगी और साहित्यिक रूप से समृद्धि लाने में मदद करेंगी।
एन सी एफ और एस सी एफ के माध्यम से, उत्तराखंड की मातृभाषाओं में पुस्तक लेखन कार्यशालाएं एक माध्यम हो सकती हैं जो साहित्यिक उत्पत्ति को प्रोत्साहित करने, नए लेखकों को प्रेरित करने, और उत्तराखंड के साहित्यिक समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए साझेदारी कर सकती हैं।
स्कूल शिक्षा के क्षेत्र में इस प्रकार के पुस्तक लेखन कार्यशालाओं का आयोजन एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है जो बच्चों को उत्तराखंड की मातृभाषाओं के प्रति जागरूक बनाए रखने में मदद कर सकता है।
भाषा और साहित्य कौशल का विकास: यह कार्यशालाएं बच्चों को उनकी मातृभाषा में सुधार करने का एक अच्छा माध्यम प्रदान कर सकती हैं। बच्चे अपनी भाषा में पुस्तक लेखन करके सही व्याकरण, शब्दावली, और विचारों को स्पष्टता से व्यक्त करने का कौशल विकसित कर सकते हैं।
स्थानीय साहित्य का प्रचार-प्रसार: इसके माध्यम से, स्थानीय साहित्य को बच्चों तक पहुंचाने का एक साधन बन सकता है। यह उन्हें उनके स्थानीय साहित्य, गाने, किस्से, और भूमि के विचार के प्रति अधिक जागरूक बना सकता है।
समृद्ध बौद्धिक विकास: इस प्रकार की कार्यशालाएं बच्चों को लेखन, समीक्षा, और संवाद कौशल में सुधार करने का अवसर प्रदान करती हैं, जिससे उनका बौद्धिक विकास हो सकता है।
सांस्कृतिक संवेदनशीलता का विकास: यह कार्यशालाएं बच्चों को उनकी सांस्कृतिक विरासत को महत्वपूर्ण बनाए रखने का संवेदनशीलता प्रदान कर सकती है, जिससे वे अपनी भूमि और समाज के प्रति समर्पित बन सकते हैं।
विशेष आधारित पाठ्यक्रम का समर्थन: ये कार्यशालाएं स्कूलों को अपने विशेष पाठ्यक्रम को समृद्ध करने के लिए समर्थन प्रदान कर सकती हैं और उन्हें बच्चों को स्थानीय भाषा और साहित्य से जोड़कर पढ़ाई को मजेदार और उत्साहजन बना सकती हैं।
इस प्रकार के पुस्तक लेखन कार्यशालाएं स्कूलों में साहित्यिक संरचना बढ़ाने, विद्यार्थियों को स्थानीय भाषा और साहित्य के प्रति जागरूक करने, और उनके बौद्धिक विकास को समर्थन करने में मदद कर सकती हैं। इससे न केवल उनकी भाषा कौशल में सुधार होगा, बल्कि उनका साहित्यिक रूप से समृद्धि भी हो सकता है।