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Monday, April 22, 2024

उत्तराखंड SCERT ने आयोजित किया विश्व पृथ्वी दिवस कार्यक्रम

 एस.सी.ई.आर.टी. उत्तराखण्ड में मनाया गया विश्व पृथ्वी दिवस

राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद उत्तराखण्ड में वर्ष 2024 के विश्व पृथ्वी दिवस का आयोजन धूमधाम से किया गया। इस अवसर पर विश्व पृथ्वी दिवस की संकल्पना, आवश्यकता एवं इतिहास पर चर्चा की गयी तथा पृथ्वी के पर्यावरण की रक्षा के लिए श्रीमती बन्दना गर्ब्याल,निदेशक अकादमिक शोध एवं प्रशिक्षण उत्तराखण्ड, की अध्यक्षता में परिषद के सदस्यों के द्वारा प्रतिज्ञा ली गयी। 

कार्यक्रम का संयोजन करते हुए डॉ. राकेश गैरोला ने पृथ्वी दिवस के बारे में प्रकाश डाला और कहा कि यह कार्यक्रम पर्यावरण संबंधी मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के लिए वैश्विक प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए है जो प्रतिवर्ष 22 अप्रैल को मनाया जाता है। विश्व का पहला विश्व पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल, 1970 को संयुक्त राज्य अमेरिका में आयोजित किया गया था। पृथ्वी दिवस के आयोजन के इतिहास पर चर्चा की गयी तथा एक वैश्विक घटना पर प्रकाश डालते हुए बताया गया कि इसका आयोजन अमेरिकी सीनेटर गेलॉर्ड नेल्सन के नेतृत्व में पर्यावरण कार्यकर्ताओं के एक समूह द्वारा किया गया था, जो पर्यावरण पर औद्योगीकरण और प्रदूषण के नकारात्मक प्रभाव के बारे में चिंतित थे।  

1969 मेंसंयुक्त राज्य अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया राज्य को एक बड़ी पर्यावरणीय आपदा घटित हुई। सांता बारबरा तेल रिसाव से कैलिफ़ोर्निया के तट के साथ समुद्र में 3 मिलियन गैलन तेल लीक हो गया। समुद्र में तेल की परत 35 मील तक बड़े पैमाने पर फैल गई। इस पर्यावरणीय समस्या को देखकर पर्यावरण के प्रति जुनून रखने वाले सीनेटर गेलॉर्ड नेल्सन कार्रवाई के लिए आगे आए।

सन 1970 में, कार्यकर्ता डेनिस हेस की मदद से, उन्होंने एक राष्ट्रव्यापी विरोध दिवस का आयोजन किया। इन विरोध प्रदर्शनों ने मीडिया का इतना ध्यान आकर्षित किया कि सीनेटर नेल्सन ने एक टीम बनाने और आंदोलन जारी रखने का फैसला किया। 1970 में पृथ्वी दिवस वैश्विक हो गया 

पृथ्वी दिवस का विचार सबसे पहले 1969 में यूनेस्को सम्मेलन में शांति कार्यकर्ता जॉन मैककोनेल द्वारा प्रस्तुत किया गया।इस दिन को मनाने का उद्देश्य पृथ्वी का सम्मान करना और उस पर शांति बनाए रखना था।  22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस के रूप में चुना गया क्योंकि यह उत्तरी गोलार्ध में बसंत की शुरुआत और दक्षिणी गोलार्ध में शरद ऋतु के अंत का प्रतीक है। इस दिवस के आयोजन के दौरान विश्व के पिघलते हुए ग्लेशियरों की घटनाओं को वीडियो के माध्यम से दिखाया गया तथा इनके दुष्प्रभावों पर चर्चा की गयी। बताया गया कि वर्ष 2024 में पृथ्वी दिवस की थीम ‘Planet vs. Plastics’ है। सदस्यों के द्वारा वैश्विक प्लास्टिक संधि पर भी चर्चा की गयी। प्लास्टिक प्रदूषण एक वैश्विक मुद्दा है जो पर्यावरण को नष्ट करता है, जैव विविधता को कम करता है, ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाता है और मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।

2040 तक सभी जीवाश्म ईंधन-आधारित प्लास्टिक उत्पादन में 60% की कमी का लक्ष्य रखा गया है। बताया गया कि फैशन उद्योग ने भी पृथ्वी की सेहत को प्रभावित किया है। सालाना 100 बिलियन परिधान बनते हैं, 87% लैंडफिल या भस्मक में मिल जाते हैं। केवल 1% पुनर्नवीनीकरण होते हैं।  हर साल 200 मिलियन पेड़ों को सेल्युलोसिक फाइबर के लिए नष्ट कर दिया जाता है, जिससे जैव विविधता खतरे में पड़ जाती है।  69% कपड़े कच्चे तेल से बने होते हैं और उन्हें धोने से समुद्र में माइक्रोप्लास्टिक का 35% हिस्सा मिलता है।  माइक्रोफाइबर खाद्य श्रृंखला, हमारी हवा और मिट्टी में हैं जो हमारे अंगों और हमारे रक्तप्रवाह में जाकर हमारे अस्तित्व को खतरे में डालते हैं।

हम कितना डिस्पोजेबल प्लास्टिक का उपयोग करते हैं?

वैश्विक प्लास्टिक पैकेजिंग उद्योग में प्लास्टिक का अनुमानित उत्पादन 460 मिलियन मीट्रिक टन तक पहुंच गया है।  वर्तमान में 75 से 199 मिलियन टन प्लास्टिक हमारे महासागरों में है।  दुनिया भर में हर मिनट 10 लाख प्लास्टिक की बोतलें खरीदी जाती हैं, जबकि एक साल में 5 ट्रिलियन प्लास्टिक बैग का इस्तेमाल किया जाता है।  अमेरिका में हर साल 9.7 अरब सिगरेट के टुकड़े फेंके जाते हैं, इनमें से 4 अरब जलमार्गों में होते हैं। वे सभी कूड़े का लगभग 20% हैं।

एकल-उपयोग (Single Use) प्लास्टिक

अभी तक बनाया गया 79% प्लास्टिक अभी भी लैंडफिल या प्राकृतिक वातावरण में पड़ा हुआ है। हर साल कम से कम 14 मिलियन टन प्लास्टिक हमारे महासागरों में पहुँच जाता है। दुनिया हर साल 26 मिलियन अमेरिकी टन से अधिक पॉलीस्टाइनिन (प्लास्टिक फोम) का उत्पादन करती है। अमेरिकी अकेले हर साल लगभग 25 अरब स्टायरोफोम कॉफी कप फेंक देते हैं।

महासागर में प्लास्टिक

2050 तक महासागरों में मछलियों की तुलना में प्लास्टिक अधिक (वजन के हिसाब से) होगा। प्लास्टिक से मूंगा चट्टान पर बीमारी की संभावना 22 गुना बढ़ जाती है। 11.1 बिलियन से अधिक प्लास्टिक कण मूंगों को प्रभावित कर रहे हैं। यह संख्या 2025 तक नाटकीय रूप से 40% तक बढ़ने का अनुमान है। कई जानवर भूख के कारण माइक्रोप्लास्टिक खाते हैं। खाद्य श्रृंखला के आधार पर फिर इन जानवरों को दूसरे लोग खा जाते हैं।

मानव स्वास्थ्य के लिए प्लास्टिक खतरा

बिस्फेनॉल ए (बी.पी.ए.-अंतःस्रावी अवरोधक) का उपयोग प्लास्टिक पेय कंटेनर, डिनरवेयर, भोजन के डिब्बे और खिलौनों की सुरक्षात्मक परत बनाने के लिए किया जाता है।  यह मनुष्य में अंतःस्रावी गतिविधि को कम या बढ़ाकर स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है (जैसे- कैंसर रोग)।  जब भोजन को BPA युक्त प्लास्टिक में लपेटा जाता है, तो फ्थैलेट्स भोजन में लीक हो सकते हैं। अन्य खाद्य पदार्थों की तुलना में मांस और पनीर जैसे वसायुक्त खाद्य पदार्थों के संपर्क में अधिक।

माइक्रोप्लास्टिक्स और पेयजल

हर साल, हम अपनी पेयजल आपूर्ति में 70,000 से अधिक माइक्रो प्लास्टिक का सेवन करते हैं। एक ऊनी जैकेट एक बार धोने के दौरान 250,000 माइक्रोफ़ाइबर तक बहा देती है। माइक्रोप्लास्टिक कार के टायरों की धूल पहियों और सड़क के बीच घर्षण से बनती है और जलमार्गों में उड़ जाती है। यह मनुष्य द्वारा साँस के रूप में ग्रहण की जाती है। कार के टायर हर 100 किलोमीटर पर 20 ग्राम प्लास्टिक धूल छोड़ते हैं।  हम प्रति वर्ष सामान्य दर से 10,000 गुना अधिक प्रजातियाँ खो रहे हैं।  हम प्रति वर्ष सामान्य दर से 10,000 गुना अधिक प्रजातियाँ खो रहे हैं।  मानव उपभोग, शहरीकरण, जनसंख्या वृद्धि और व्यापार में वृद्धि के कारण पिछले 50 वर्षों में दुनिया भर में जानवरों की आबादी में 70% की गिरावट आई है।  मछली पकड़ने के गियर (बायकैच) में फंसने से, हर साल वैश्विक स्तर पर अनुमानित 300,000 व्हेल, डॉल्फ़िन और पोरपोइज़ (सिटासियन) की मौत हो जाती है।

मधुमक्खियों का जीवन भी खतरे में

मधुमक्खियाँ उन पौधों को परागित करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाती हैं जिन्हें हम खाते हैं। एक मधुमक्खी परिवार एक दिन में 300 मिलियन फूलों को परागित कर सकता है। विश्व की लगभग 75% फसलें परागणकों पर निर्भर हैं। कई कारक मधुमक्खियों की संख्या में गिरावट को प्रभावित कर रहे हैं, जिनमें निवास स्थान का विखंडन, नियोनिकोटिनोइड कीटनाशकों का बढ़ता उपयोग, कॉलोनी पतन विकार और जलवायु परिवर्तन शामिल हैं।  एक मधुमक्खी परिवार एक दिन में 300 मिलियन फूलों को परागित कर सकता है। विश्व की लगभग 75% फसलें परागणकों पर निर्भर हैं।

कार्यक्रम में एस.सी.ई.आर.टी. उत्तराखण्ड की संयुक्त निदेशक श्रीमती कंचन देवराड़ी ने कहा कि हमें पृथ्वी की सुरक्षा के लिए ऊर्जा की खपत को कम करना होगा तथा ऊर्जा के संसाधनों का संरक्षण करना होगा। विश्व में भोजन की कमी को दूर करने के लिए विवाह आदि समारोहों में भोजन की बर्बादी को रोकने का प्रयास करना चाहिये।


श्रीमती आशा पैन्यूली, संयुक्त निदेशक
ने कहा कि
पृथ्वी के लिए हमारी कुछ आदतें भारी पड़ रही हैं। माइक्रो ब्रीड्स वाले उत्पादों का प्रयोग के अन्तर्गत सिलिकॉन बीड्स वाले स्क्रब फेसवॉश पेयजल को दूषित करते हैं। टैक्सटाइल डाइंग (पॉलिस्टर, नायलॉन, एक्रेलिक जैसे फैब्रिक एवं माइक्रोप्लॉस्टिक) स्वच्छ पानी के प्रदूषक में दूसरे नम्बर पर हैं जो हमारी रंग-बिरंगे कपड़ों की चाहत में प्रयोग होता है। हममें से 90 प्रतिशत लोग छोटी बैटरियों के लिए लापरवाह होते हैं, जो पृथ्वी की सेहत के लिए हानिकारक होते हैं। हम पुराने गैजेट्स का संग्रह करते हैं जिससे भारत में 16 लाख टन ई-कचरा मौजूद है।

अपर निदेशक अजय कुमार नौडियाल ने कहा कि पृथ्वी की सुरक्षा के लिए हमें जैव विविधता के संरक्षण पर ध्यान देना होगा। अपनी एक छोटी कोशिश के रूप में हम कागज की न्यूनतम संख्या का अधिकतम उपयोग कर सकते हैं। प्लास्टिक का प्रयोग हमें कम से कम करना होगा।


निदेशक श्रीमती बन्दना गर्ब्याल ने R के बारे में चर्चा की और बताया कि हमें अपने जीवन में इन R को अपनाना होगा-

     Refuse- प्रयुक्त प्लास्टिक कचरा में 60 % सिंगल यूज।

     Reduce- खपत को कम करना, जैसे- विद्युत उपयोग

     Reuse- नया उत्पाद लेने के बजाय पुराने को ही प्रयोग करना (कागज पर प्रिंट, परिधान का प्रयोग)

     Re-purpose- पुराने सामान को दूसरे काम में प्रयोग करना।

     Recycle- पुराने सामान के मैटेरियल को नये रुप में तैयार करने में सहयोग।

     Repair- मरम्मत करके पुनर्चक्रण करना।

कार्यक्रम में ग्रीन हिट मूवमेण्ट पर भी चर्चा की गयी। इसके अन्तर्गत इण्टरनेट पर एक सर्च पर एक पेड़ लगाना चाहिये। ग्रीन सर्च रिपोर्ट के अनुसार एक इण्टरनेट पर एक सर्च करने में ही 17 सेकेण्ड के लिए 60 वॉट के बल्ब को जलाये रखने के बराबर ऊर्जा की खपत होती है। एआई जैमिनी के अनुसार गूगल पर एक दिन में 8.5 अरब से अधिक सर्च होती हैं। अतः ऐसे मूवमेंट से पर्यावरण को सुरक्षित रखा जा सकता है।


कार्यक्रम में मुकेश सेमवाल, भुवनेश पन्त, सुशील गैरोला, डॉ. रंजन भट्ट, के.एन. बिजल्वाण, डॉ. हरेन्द्र अधिकारी, रमेश बडोनी, सुनील भट्ट आदि ने विचार रखे। कार्यक्रम के अन्त में श्रीमती शुभ्रा सिंघल ने सभी सदस्यों को पृथ्वी की रक्षा की निम्नलिखित शपथ दिलाई-

मैं प्रतिज्ञा लेता/लेती हूं कि मैं इस धरती की रक्षा के लिए प्लास्टिक का उपयोग कम से कम करूंगा/करूंगी। मैं जानता/जानती हूं कि मैंने यह धरती अपनी आने वाली संतति से अपने प्रयोग के लिए उधार ली है और मुझे उसे इस धरती को उससे बेहतर स्थिति में लौटाना है, जैसे कि मैने उधार ली थी। मैं पृथ्वी के उत्तम स्वास्थ्य के लिए प्रत्येक प्रयत्न करूंगा/करूंगी ताकि हम और हमारी पीढ़ी स्वस्थ रहे। 

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