इस महत्वपूर्ण आयोजन में राज्य के समस्त मुख्य शिक्षा अधिकारी, जिला शिक्षा अधिकारी (बेसिक एवं माध्यमिक), उप शिक्षा अधिकारी, खंड शिक्षा अधिकारी, DIET प्राचार्यगण एवं अन्य उच्च शिक्षा अधिकारीगण की गरिमामयी उपस्थिति रही। कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य था – पुस्तक के विकास की यात्रा, उसके शैक्षिक महत्व, विद्यालय स्तर पर उसके प्रभावी संचालन एवं कक्षा कक्ष में उसके शिक्षण-पद्धति संबंधी पहलुओं पर विस्तृत चर्चा।
प्रस्तुतीकरण के दौरान न केवल पुस्तक के आवरण पृष्ठ की परिकल्पना को साझा किया गया, बल्कि उसमें समाहित पाठ्य-सामग्री की विविधता, भारतीय संस्कृति, परंपरा एवं विभूतियों से जुड़े संदर्भ, और छात्रों के जीवन-मूल्यों से जुड़ाव को भी उजागर किया गया। यह पुस्तक न केवल सामाजिक विज्ञान की विषयवस्तु को रोचक तरीके से प्रस्तुत करती है, बल्कि उत्तराखण्ड की गौरवशाली विरासत और विभूतियों के माध्यम से छात्रों को भारतीयता और जड़ों से जोड़ने का कार्य करती है।
प्रस्तुतीकरण के दौरान 24 मार्च 2025 को निर्गत शासनादेश के अनुसार विद्यालय स्तर पर पुस्तक के संचालन, शिक्षण अवधि निर्धारण, आकलन की मुख्य रूपरेखा, तथा अधिकारियों द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रियाओं पर भी गहन चर्चा हुई।
निदेशक बन्दना गर्ब्याल ने सभी अधिकारियों को निर्देशित किया कि वे अपने अधीनस्थ स्तर पर इस पुस्तक का विधिवत क्रियान्वयन सुनिश्चित करें, विद्यालयों में निर्धारित समयानुसार इसका संचालन हो और शासनादेश के अनुरूप अग्रेतर कार्यवाहियाँ समयबद्ध रूप से संपन्न हों। उन्होंने इस पुस्तक की महत्ता पर बल देते हुए इसे छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए एक अनूठा प्रयास बताया।
अपर निदेशक पदमेन्द्र सकलानी ने SCERT की भूमिका की सराहना करते हुए कहा कि यह पुस्तक बच्चों को भारतीय ज्ञान परंपरा से जोड़ने, उनमें गर्व की भावना विकसित करने, एवं स्वदेशी दृष्टिकोण को अपनाने की दिशा में एक प्रभावशाली माध्यम बनेगी।
इस पुस्तक के विकास समन्वयक श्री सुनील भट्ट एवं सह-समन्वयक श्री गोपाल सिंह घुघत्याल द्वारा प्रस्तुतीकरण के माध्यम से पुस्तक के विकास की पृष्ठभूमि, विद्यालय स्तर पर इसकी आवश्यकता, औचित्य, आकलन की पद्धति एवं कक्षा कक्ष में विषयवस्तु के प्रभावशाली अंतरण पर विस्तृत विवरण साझा किया गया।
यह आयोजन न केवल एक पुस्तक का प्रस्तुतीकरण था, बल्कि यह उत्तराखण्ड के शैक्षिक परिदृश्य में एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण की शुरुआत भी है, जहां शिक्षा के माध्यम से भावी पीढ़ी को अपनी विरासत और विभूतियों से जोड़ने का एक ठोस प्रयास किया गया है।