उत्तराखंड में स्थानीय भाषा और बोली में पाठ्य पुस्तकें: शिक्षा को समृद्धि की दिशा में अग्रसर करने का प्रयास
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के आलोक में, भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में मातृभाषा में शिक्षा को बढ़ावा देने का प्रस्ताव किया गया है। यह नीति उत्तराखंड राज्य को अपनी स्थानीय भाषा और बोली में पाठ्य पुस्तकों के विकास के लिए नई दिशा सूचित करती है। शिक्षा नीति 2022 के अनुशंसा के अनुसार, उत्तराखंड ने पांच दिवसीय कार्यशालाओं का आयोजन किया, जिसमें गढ़वाली, कुमाऊंनी, जौनसारी, और रं भाषा पर आधारित पाठ्य पुस्तकों का विकास हुआ। इन कार्यशालाओं में, शिक्षकों और शैक्षणिक संस्थानों ने अपने स्थानीय क्षेत्र की भाषा और बोली को समझने और उसे पाठ्य पुस्तकों में समाहित करने के लिए काम किया। उन्होंने इन पुस्तकों में स्थानीय लोककथाओं, पौराणिक कथाओं, मुहावरों, और उपयोगी कार्यशैलियों को भी शामिल किया है।
शिक्षा निदेशक अकादमिक ,शोध एवं प्रशिक्षण बन्दना गर्व्याल ने निर्माण समिति के अधिकारियों और शिक्षकों को संबोधित करते हुए कहा कि इस प्रकार की पाठ्य पुस्तकों के विकास से बच्चों को अपनी मातृभाषा में पढ़ाई करने का मौका मिलेगा, जिससे उनकी भाषा और सांस्कृतिक पहचान को समर्थन मिलेगा। उन्होंने शिक्षकों से अपने स्थानीय पाठ्यक्रम को संस्कृति और भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप बनाने का अनुरोध किया।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने शिक्षा के क्षेत्र में एक नई दिशा स्थापित की है, जिसमें मातृभाषा में शिक्षा को महत्वपूर्ण माना गया है। इसके प्रमुख उद्देश्यों में से एक है बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा देना, ताकि उनका अधिक संपन्न और स्वतंत्र विकास हो सके। उत्तराखंड भी इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए स्थानीय भाषा और बोली में पाठ्य पुस्तकों के विकास की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
उत्तराखंड के बच्चों के लिए मातृभाषा में शिक्षा का महत्व अत्यंत उच्च है। इसके साथ ही, राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2022 की अनुशंसाएं भी मातृभाषा में शिक्षा को प्रोत्साहित करती हैं। इसी के समृद्ध आधार पर, उत्तराखंड ने शिक्षकों के लिए स्थानीय भाषा में पाठ्यपुस्तकों का विकास किया है। इन पाठ्यपुस्तकों में स्थानीय बोली भाषा को कक्षा एक से पांच तक तैयार किया गया है। इसके लिए विभिन्न स्तरों पर कार्यशालाएं आयोजित की गईं हैं। इन कार्यशालाओं में गढ़वाली, कुमाऊंनी, जौनसारी, और रं जैसी स्थानीय भाषाओं पर आधारित पुस्तकों का विकास, परिशोधन, डिजाइनिंग, और चित्रण किया गया है।
बन्दना गर्व्याल शिक्षा निदेशक ने शिक्षकों के साथ इस कार्यशाला को साझा किया है। उन्होंने उन्हें स्थानीय पाठ्यक्रम को स्थानीय संस्कृति और भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप बनाने के लिए प्रोत्साहित किया है। इसके साथ ही, वे खेल, पौराणिक परंपराएं, लोकोक्तियां, मुहावरे, और कार्यशैलियों को भी पुस्तकों में शामिल करने का सुझाव दिया है। इस प्रकार की कार्यशालाएं न केवल बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करती हैं, बल्कि यह उन्हें उनकी स्थानीय संस्कृति और विरासत से भी परिचित कराती हैं। इसके अलावा, यह उत्तराखंड के भविष्य के लिए भाषा और सांस्कृतिक संरक्षण में भी महत्वपूर्ण योगदान करती है।
इस उत्तराखंड की पहल मे मार्गदर्शक संयुक्त निदेशक आशा रानी पैन्यूली , सहायक निदेशक, कृष्णानन्द बिजलवांण और कार्यक्रम संयोजक सुनील भट्ट आदि के सहयोग ने इस प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने इन पाठ्य पुस्तकों को इस तरह से डिज़ाइन किया है कि वे बच्चों के लिए रोचक, आकर्षक, और संवेदनाशील हों, ताकि उनका रुझान और रुचि बनाए रहे।इस प्रकार, उत्तराखंड के इस पहल का मकसद नहीं सिर्फ स्थानीय भाषाओं को समृद्ध करना है, बल्कि इससे उन सभी बोलियों और संस्कृतियों को एकत्र करने का भी प्रयास किया जा रहा है, जो उत्तराखंड के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, और भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हैं। यह शैक्षिक पहल उत्तराखंड को नए ऊंचाइयों की ओर अग्रसर करने में मदद करेगी, जहाँ सभी बच्चे अपनी भाषा और संस्कृति के प्रति समर्पित होंगे।
इस प्रकार, यह कार्यशाला न केवल बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाने के लिए एक माध्यम प्रदान करती है, बल्कि उन्हें अपनी स्थानीय सांस्कृतिक विरासत को भी समर्थन करती है। इस प्रकार, उत्तराखंड राज्य अपनी भाषा और संस्कृति को संरक्षित रखने के लिए नई पीढ़ियों को समर्थन प्रदान करता है और उन्हें अपनी विरासत के प्रति अभिमानी बनाता है।