निदेशक बंदना गर्ब्याल:
कार्यक्रम की शुरुआत निदेशक, अकादमिक, शोध एवं प्रशिक्षण, बंदना गर्ब्याल ने की। उन्होंने हिन्दी भाषा के महत्व पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हिन्दी हमारी संस्कृति और सभ्यता की मूल धारा है। उन्होंने नारी के विभिन्न रूपों पर आधारित एक प्रेरणादायक कविता सुनाई, जिसने महिलाओं के योगदान और उनके सम्मान पर सभी को सोचने पर मजबूर किया। उन्होंने यह भी कहा कि हिन्दी भाषा को हमें अपने जीवन में और अधिक अपनाने की जरूरत है, ताकि यह और भी सशक्त बन सके।
अपर निदेशक आशा रानी पैन्यूली:
अपर निदेशक एस सी ई आर टी, आशा रानी पैन्यूली ने हिन्दी भाषा के एक-एक वर्ण के महत्व पर गहन विचार व्यक्त किए। उन्होंने बताया कि हिन्दी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि यह हमारी पहचान और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है। उन्होंने हिन्दी भाषा की संरचना और इसके व्याकरण की जटिलताओं को सरल तरीके से प्रस्तुत किया, जिससे श्रोताओं को भाषा के प्रति और भी गहरी समझ विकसित करने में मदद मिली।
संयुक्त निदेशक कंचन देवराड़ी:
संयुक्त निदेशक कंचन देवराड़ी ने ऑनलाइन माध्यम से विचार रखने के महत्व पर बात की। उन्होंने हिन्दी भाषा को एक छात्र की तरह सीखने और उसे समझने की आवश्यकता बताई। उनका कहना था कि हमें इस भाषा को सीखते रहना चाहिए, क्योंकि यह हमारी सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। उन्होंने जय शंकर प्रसाद की 'कामायनी' से कविता का वाचन किया, जो बेहद प्रेरणादायक था।
सहायक निदेशक डॉ. के एन बिजलवाण:
डॉ. के एन बिजलवाण ने अपनी हास्य कविता से कार्यक्रम में एक विशेष रंगत जोड़ दी। उनकी कविता एक शिक्षक की पदोन्नति के लिए किए जाने वाले संघर्ष पर आधारित थी, जिसे सुनकर सभी हंसी और गंभीरता के बीच झूलते रहे। उनकी रचना ने शिक्षकों की व्यावहारिक समस्याओं को हल्के-फुल्के अंदाज में पेश किया, जिससे सभी श्रोताओं का मन मोह लिया।
सहायक निदेशक किरण बहुखंडी:
सहायक निदेशक बहुखंडी ने हिन्दी भाषा के औपचारिक और विधिक उपयोग पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने बताया कि चिकित्सा, न्यायालय और कानून जैसे क्षेत्रों में हिन्दी भाषा का सही और सटीक उपयोग आवश्यक है, ताकि बड़े-बड़े विवादों को सुलझाया जा सके। उनका कहना था कि भाषा का सही ढंग से उपयोग ना करने से गलतफहमियां और समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, इसलिए हमें सतर्क रहना होगा।
प्रवक्ता सुधा पैन्यूली ने हिन्दी भाषा के महत्व और उसकी वर्तमान स्थिति पर अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने हिन्दी के व्यापक उपयोग और इसे एक सशक्त भाषा के रूप में स्थापित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उनका कहना था कि हिन्दी को न केवल शिक्षा, बल्कि व्यवसाय और विज्ञान के क्षेत्रों में भी प्रमुखता मिलनी चाहिए।
डाइट,प्रवक्ता डॉ. संदीप कुमार जोशी ने हिन्दी को हमारी आत्मा की भाषा कहा। उन्होंने कहा कि विदेशियों ने हमें बांटकर अलग किया, लेकिन हिन्दी ने हमें फिर से जोड़ने का काम किया। उन्होंने कई प्रसिद्ध कवियों की पंक्तियों को उद्धृत करते हुए कहा कि क्षेत्रीय भाषाओं को भी हिन्दी से समृद्धि मिली है। इसके साथ ही उन्होंने 'परिवर्तन' नामक कविता भी प्रस्तुत की, जिसने सबका मन मोह लिया।
डॉ. उषा कटियार ने संत कबीर का एक भजन संगीत के साथ प्रस्तुत किया। उनकी प्रस्तुति ने हिन्दी भाषा की गहराई और आध्यात्मिकता को उभारा। उन्होंने यह भी कहा कि हिन्दी साहित्य में संगीत का विशेष स्थान है और इसे समझने के लिए भाषा के साथ-साथ उसकी ध्वनि और लय को भी महसूस करना जरूरी है।
प्रवक्ता डॉ. अवनीश ने हिन्दी भाषा की तुलना अन्य भाषाओं से करते हुए इसे 'हिन्दी के कारखाने' की तरह बताया, जहां विचारों को निखारा जाता है। उन्होंने कहा कि हिन्दी में इतनी क्षमता है कि यह किसी भी भाषा के साथ संवाद स्थापित कर सकती है। उन्होंने अपनी बात को एक मुक्तक के माध्यम से प्रस्तुत किया, जिसने सभी को प्रेरित किया।
डाइट प्रवक्ता डॉ. मनोज कुमार पांडे ने सुमित्रानंदन पंत की कविता सुनाई, जिसने कार्यक्रम को साहित्यिक ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उन्होंने कहा कि हिन्दी साहित्य की गहराई को समझने के लिए हमें इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाना होगा।
डाइट बागेश्वर प्रवक्ता के एस रावत ने अपने समुदाय के साथ भाषा के कार्य को साझा किया। उन्होंने पर्यायवाची शब्दों से भरी एक सुंदर कविता प्रस्तुत की, जिसने श्रोताओं को हिन्दी भाषा की समृद्धि और उसकी गहराई का एहसास कराया।
इस प्रकार, हिन्दी दिवस का यह आयोजन हिन्दी भाषा की महिमा और उसकी महत्ता को और भी उजागर करने में सफल रहा। सभी सहभागियों ने हिन्दी के प्रति अपनी निष्ठा और प्रेम प्रकट किया, जिससे यह कार्यक्रम एक स्मरणीय अनुभव बन गया।