Tuesday, December 24, 2024

स्कूलों में सिखाई जाएगी ऐपन कला : जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान के माध्यम से शिक्षकों को किया जा रहा प्रशिक्षित

 देहरादून:

उत्तराखंड की लोक कला "ऐपन" अब प्राथमिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में सम्मिलित होगी। विद्यार्थियों को प्राथमिक कक्षाओं से इसका ज्ञान दिया जाएगा। इसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत लागू किया जा रहा है। इसके तहत आठवीं कक्षा तक के बच्चों को उत्तराखंड की लोककला, पारंपरिक लोक संस्कृति और लोक भाषाओं का अध्ययन कराया जाएगा।

एससीईआरटी की ओर से प्रदेशभर के जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डायट) के माध्यम से ऐपन कला का महत्व और इसके बनाने की विभिन्न तौर-तरीकों को सिखाया जा रहा है। इसके लिए शिक्षक-शिक्षिकाओं को प्रशिक्षित किया जा रहा है ताकि विद्यालयों में ऐपन कला बनाने के तौर-तरीकों को छात्रों को सिखाएं और उन्हें इसके इतिहास और महत्व के बारे में बताएं।

जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान देहरादून के प्राचार्य श्रीराम सिंह चौहान ने बताया कि शिक्षक-शिक्षिकाओं को उत्तराखंड की लोककला ऐपन कला की जानकारी दी जा रही है। यह परंपरागत कला प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में विशेष अवसरों जैसे त्योहार, शादी आदि में बनाई जाती है। इस कला का संरक्षण और संवर्धन करना जरूरी है।

ऐपन कला की विशेषता:
ऐपन कला एक दृश्य भाषा के रूप में पीढ़ियों के बीच संदेश और कहानियां संप्रेषित करती है। यह उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत को संजोने और कुमाऊं की परंपराओं को संरक्षित करने में सहायक है। ऐपन कला, किसी भी परंपरागत रूप की तरह, विलुप्त नहीं होनी चाहिए।

इसकी जानकारी विद्यार्थियों को दी जाएगी ताकि यह कला जीवित रह सके। यह लोककला कमद के फूल, पक्षियों जैसे रूपांकनों, पारंपरिक कहानियों और ऐतिहासिक घटनाओं के कथानक को व्यक्त करती है। प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त रंग, एक लयबद्ध-अनुकूल आयाम जोड़ते हैं। इस कला के जरिए समाज और संस्कृति को जोड़ने का भी प्रयास किया जा रहा है।

डॉ मुकुल सती ने कहा:
डॉ मुकुल सती, अपर निदेशक, एससीईआरटी, ने बताया कि ऐपन कला के संरक्षण और इसे नई पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए इस लोककला को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया गया है। उन्होंने कहा कि यह कला केवल एक रचनात्मक अभिव्यक्ति नहीं है, बल्कि यह समाज, संस्कृति और परंपराओं को जोड़ने का माध्यम भी है।

डॉ सती ने यह भी कहा कि ऐपन कला बच्चों में उनकी सांस्कृतिक जड़ों के प्रति जागरूकता बढ़ाने में मदद करेगी और साथ ही उनकी रचनात्मकता को भी प्रोत्साहित करेगी। यह प्रयास राष्ट्रीय शिक्षा नीति के उद्देश्यों के साथ पूर्णतः सामंजस्य में है।