लोक कला किसी भी समाज की आत्मा होती है, और उसकी जड़ों से जुड़कर ही शिक्षा में संवेदनशीलता, रचनात्मकता और सांस्कृतिक गर्व का संचार किया जा सकता है। इसी उद्देश्य के तहत राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद, उत्तराखंड द्वारा 25 नवंबर से 29 नवंबर 2025 तक लोक चित्रांकन के प्रयोगात्मक पक्ष पर आधारित पांच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का प्रथम चरण आयोजित किया गया। यह प्रशिक्षण परिषद भवन में सम्पन्न हुआ जिसमें राज्य के विभिन्न जनपदों से आए कला शिक्षकों ने उत्साहपूर्वक प्रतिभाग किया । प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्घाटन परिषद के सहायक निदेशक डाॅ० के० एन० बिजल्वान की अध्यक्षता में हुआ। उन्होंने नई शिक्षा नीति 2020 के आलोक में उत्तराखंड राज्य में कला शिक्षा की दिशा और भविष्य पर प्रकाश डालते हुए प्रतिभागियों को प्रेरित किया। डॉ. बिजल्वान ने विशेष रूप से इस बात पर बल दिया कि कला शिक्षा न केवल रचनात्मकता का विस्तार करती है बल्कि विद्यार्थियों के संपूर्ण व्यक्तित्व विकास में सेतु का कार्य भी करती है।
कार्यक्रम के समन्वयक एवं प्रशिक्षक डॉ० संजीव चेतन ने लोक चित्रकला की अवधारणा, उसकी शैक्षिक उपयोगिता और समेकित शिक्षा में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका को विस्तार से समझाया। उन्होंने प्रशिक्षण की पूरी रूपरेखा स्पष्ट करते हुए प्रतिभागियों को विभिन्न लोक कला शैलियों की बारीकियों से अवगत कराया।
इस क्रम में—
- रवि दर्शन चोपाल ने नई शिक्षा नीति 2020 की मूल भावना और उसमें कला शिक्षा की भूमिका को सरल ढंग से प्रस्तुत किया।
- प्रिया गुसाईं ने कला के मनोवैज्ञानिक पहलुओं को अत्यंत सरल एवं व्यवहारिक रूप में समझाया।
- डॉ दीपक प्रताप ने बच्चों के शैक्षिक आकलन से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदुओं को क्रमबद्ध तरीके से रखने का कार्य किया।
राज्य के नौ जनपदों — देहरादून, नैनीताल, पौड़ी, ऊधमसिंह नगर, टिहरी, हरिद्वार, उत्तरकाशी, बागेश्वर तथा रुद्रप्रयाग — के कला शिक्षकों ने इस प्रशिक्षण में भाग लिया।
- कैनवास पर विभिन्न रूपों में लोक कला तत्वों का चित्रण किया,
- पारंपरिक कला में नवाचार और फ्यूजन की संभावनाओं को परखा,
- समेकित शिक्षा (Inclusive Education) में लोक कला की भूमिका को समझते हुए इसकी सरलता और सहजता को विद्यार्थियों तक पहुँचाने की प्रतिबद्धता दोहराई।
इस प्रशिक्षण से शिक्षकों ने न केवल लोक कला की मूल आत्मा को जाना बल्कि बदलते समय में इसके नए रूपों को अपनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम भी बढ़ाए। लोक चित्रांकन प्रशिक्षण का द्वितीय चरण 2 से 6 दिसंबर 2025 तक आयोजित किया जाएगा, जिसमें प्रतिभागियों को और उन्नत तकनीकों, नवाचारी अभ्यासों तथा लोक कला के विस्तृत आयामों से अवगत कराया जाएगा।
यह पांच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम कला शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण पहल साबित हुआ है। इससे न केवल कला शिक्षकों को नई दृष्टि मिली, बल्कि लोक चित्रांकन की धरोहर को नई पीढ़ी तक पहुँचाने की दिशा में नया मार्ग भी प्रशस्त हुआ है।