मनोज बहुगुणा और रविदर्शन तोपवाल द्वारा प्रस्तुत सम्पूर्ण कार्यक्रम में उत्तराखण्ड के पारंपरिक गीत, मान्यताएँ और धीरे-धीरे गौण होते जा रहे तीज-त्योहारों पर विशेष ध्यान दिया गया। उषा कटियार ने अपनी संगीतमय प्रस्तुति में लोकगीतों का समावेश किया, जिसने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। संयुक्त निदेशक कंचन देवराडी ने भी शादी समारोह के मंगल गीत गुनगुनाकर कार्यक्रम में चार चांद लगा दिए।
मनोज बहुगुणा द्वारा उत्तराखण्ड के खुदेड़ गीत प्रस्तुत किए गए, जिन्होंने सभी को भावविभोर कर दिया। एन ई पी सेल की कामक्षा मिश्रा और उनकी टीम ने इस कार्यक्रम को नई ऊर्जा और उत्साह के साथ प्रस्तुत किया। अंत में, सभी संकाय और कार्मिकों ने टीम को उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन और योगदान के लिए बधाई दी।
इस आयोजन ने उत्तराखण्ड की सांस्कृतिक धरोहर को न केवल संरक्षित करने का संदेश दिया, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़ने की प्रेरणा भी दी। कार्यक्रम का समापन सभी की भूरी-भूरी प्रशंसा और उत्सव की भावना के साथ हुआ।
विश्व सांस्कृतिक विविधता दिवस (World Day for Cultural Diversity for Dialogue and Development) हर साल 21 मई को मनाया जाता है। यह दिवस संयुक्त राष्ट्र द्वारा 2002 में घोषित किया गया था और इसका उद्देश्य सांस्कृतिक विविधता के महत्व को बढ़ावा देना, सांस्कृतिक धरोहरों की रक्षा करना, और समाज में आपसी समझ और संवाद को प्रोत्साहित करना है।
इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य यह है कि सांस्कृतिक विविधता को एक सकारात्मक शक्ति के रूप में पहचाना जाए जो सामाजिक और आर्थिक विकास में योगदान दे सकती है। यह दिवस लोगों को विभिन्न संस्कृतियों के बीच की समानताओं और अंतरों को समझने और उन्हें स्वीकार करने के लिए प्रेरित करता है। इसके माध्यम से यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाता है कि विविधता को न केवल सहन किया जाए बल्कि उसका सम्मान और सराहना भी की जाए।
सांस्कृतिक विविधता का सम्मान और संरक्षण करने से न केवल विभिन्न संस्कृतियों का अस्तित्व बना रहता है, बल्कि यह समाज में शांति, स्थिरता और विकास को भी बढ़ावा देता है। इसके अलावा, यह दिवस विभिन्न सांस्कृतिक और पारंपरिक ज्ञान को साझा करने और उनके महत्व को समझने का भी एक अवसर प्रदान करता है। संक्षेप में, विश्व सांस्कृतिक विविधता दिवस का उद्देश्य लोगों को यह समझाने का है कि विविधता हमारी सबसे बड़ी ताकत है और इसे मनाने से समाज में एकता, संवाद और समावेशिता को बढ़ावा मिलता है।