इसके अंतर्गत राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की अनुशंसाओं के अनुरूप मातृभाषा तथा स्थानीय बोली/भाषाओं को संरक्षित एवं प्रोत्साहित करते हुए क्षेत्रीय बोलियों में नुक्कड़ नाटक, लोक कथाओं जैसे राजुला मालूशाही, रामी बौराणी, तीलू रौतेली, जीतू बगड़वाल आदि पर कार्यक्रम आयोजित किए गए। इसके अतिरिक्त झोड़ा, चांचरी, छपेली, तांदी, नाटी, जागर आदि लोक गीत एवं लोक नृत्य, ऐपण तथा मुखौटे जैसे स्थानीय कला, आर्ट और क्राफ्ट आदि पर आधारित कार्यक्रम आयोजित किए गए।
निदेशक अकादमिक शोध एवं प्रशिक्षण श्रीमती बंदना गर्बयाल ने बताया कि उत्तराखंड अपनी समृद्ध सांकृतिक और ऐतिहासिक विरासत के लिए जाना जाता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति की अनुशंसाओं के अनुसार राज्य की इस अनमोल धरोहर को सजाने, संवारने और प्रसारित करने का कार्य विभिन्न कार्यों के माध्यम से किया जा रहा है।
इस दिशा में एनसीईआरटी द्वारा विकसित बरखा सीरीज की पुस्तकों का स्थानीय बोलियों गढ़वाली, कुमाऊनी तथा जौनसारी में अनुवाद किया गया है। गढ़वाली, कुमाऊनी, गुरमुखी तथा अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में द्विभाषी पुस्तकें विकसित करने का निर्णय लिया गया है।