Wednesday, September 25, 2024

संस्कृत-सम्बोधिनी: अनिवार्य पाठ्यपुस्तक विकास हेतु परिशोधन एवं सम्पादन कार्यशाला

माध्यमिक स्तर (कक्षा 9 और 10) पर हिन्दी विषय के अंतर्गत ‘अनिवार्य संस्कृत पाठ्यपुस्तक विकास’ कार्यक्रम राज्यस्तर पर तेजी से प्रगति कर रहा है। इस महत्त्वपूर्ण पहल के अंतर्गत, संस्कृत-सम्बोधिनी नामक पाठ्यपुस्तक शृंखला (प्रथम: भाग: और द्वितीय: भाग:) का निर्माण हो रहा है। इसी संदर्भ में, त्रिदिवसीय कार्यशाला का आयोजन 24 से 27 सितंबर, 2024 तक एस.सी.ई.आर.टी. उत्तराखण्ड में किया गया है।

इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य संस्कृत-सम्बोधिनी अनिवार्य पाठ्यपुस्तकों के अंतिम निर्माण हेतु परिशोधन और सम्पादन कार्य को पूर्ण करना है। यह चरण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इसके तहत पाठ्यपुस्तकों की कक्षावार और पाठवार समीक्षा कर उन्हें पाठ्यक्रम और शैक्षिक मानकों के अनुरूप ढाला जा रहा है।


निदेशक अकादमिक शोध एवं प्रशिक्षण बन्दना गर्ब्याल के अनुसार कार्यशाला में भाग ले रहे प्रतिभागियों को समीक्षक और पाठ्यपुस्तक विश्लेषक के रूप में प्रशिक्षित किया जा रहा है, ताकि वे नव-निर्मित पाठ्यपुस्तकों और ड्राफ्ट्स की गहन समीक्षा कर सकें। इस प्रक्रिया के दौरान यह सुनिश्चित किया जाएगा कि ये पाठ्यपुस्तकें निम्नलिखित मानकों पर खरी उतरती हैं या नहीं:

  • हिन्दी विषय के निर्दिष्ट पाठ्यक्रम-संस्कृत व्याकरण का समुचित समावेश।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 की अनुशंसाओं के अनुरूप सामग्री और व्याकरणिक संरचना।
  • पाठ्यपुस्तक प्रारूप और ग्रिड के मानकों का पालन।

इस कार्यशाला का मुख्य फोकस पाठ्यवस्तु के भाषिक-विस्तार और योग्यता-विस्तार पर रहेगा। डॉ. साधना डिमरी (विषय समन्वयक) ने बताया कि इन बिंदुओं पर ध्यान देकर पाठ्यपुस्तकों को अंतिम रूप दिया जाएगा।

संपादक मंडल में विशेषज्ञों की टीम शामिल है, जिनमें शामिल हैं:

  • डॉ. नवीन जसोला (असिस्टेंट प्रोफेसर, हिमालय आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज, माजरीग्रान्ट)
  • डॉ. प्रदीप सेमवाल (असिस्टेंट प्रोफेसर, उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय, हर्रावाला)
  • डॉ. सुमन भट्ट (असिस्टेंट प्रोफेसर, उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार)
  • डॉ. साधना डिमरी (प्रवक्ता-संस्कृत)

अपर निदेशक एस सी ई आर टी, अजय नौडियाल ने कहा कि यह कार्यशाला पाठ्यपुस्तक विकास की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है, जिससे सुनिश्चित किया जा सकेगा कि माध्यमिक स्तर के विद्यार्थी संस्कृत के विषय में न केवल शैक्षणिक, बल्कि व्यावहारिक दृष्टिकोण से भी समृद्ध ज्ञान प्राप्त करें।