लोक चित्रकला प्रशिक्षण के दूसरे चरण का समापन आज दिनांक 22 नवम्बर 2024 को हुआ। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में श्रीमती बंदना गर्व्याल (डायरेक्टर अकादमिक शोध एवं प्रशिक्षण उत्तराखण्ड), एस.सी.ई.आर.टी. उत्तराखंड की अपर निदेशक श्रीमती आशारानी पैन्यूली तथा संयुक्त निदेशक श्रीमती कंचन देवराडी , संयुक्त निदेशक श्री प्रदीप रावत तथा विद्यालयी शिक्षा के संयुक्त निदेशक श्री आनंद भारद्वाज जी ने उपस्थिति दी। साथ ही नेशनल सेमिनार में आए लद्दाख़, जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश आदि राज्यों के शिक्षाविदों ने भी अपनी उपस्थिति देकर शिक्षा में कला के महत्व पर अपनी बातें साझा कीं।
विशिष्ट अतिथियों की उपस्थिति
इस कार्यक्रम में एससीईआरटी की अपर निदेशक श्रीमती आशारानी पैन्यूली ने लोक कला के महत्व पर चर्चा करते हुए कहा कि इसे कक्षा शिक्षण में शामिल करने से बच्चों की सृजनात्मकता और सांस्कृतिक समझ को बढ़ावा मिलेगा।
प्रशिक्षण के दौरान प्रतिभागियों ने विभिन्न लोक चित्रकलाओं जैसे- मधुबनी, पहाड़ी चित्रकला, गोंड, वारली, और पिथौरागढ़ के अलंकरणीय चित्रों पर व्यावहारिक अनुभव प्राप्त किया। इस प्रशिक्षण ने न केवल शिक्षकों को इन कलाओं के इतिहास और तकनीकों से परिचित कराया, बल्कि उन्हें विद्यालय स्तर पर विद्यार्थियों के साथ इनका उपयोग करने की प्रेरणा भी दी।
समापन सत्र में प्रशिक्षकों और प्रतिभागियों ने अपने अनुभव साझा किए। प्रवक्ता एस सी ई आर टी एवं कार्यशाला समन्वयक डॉ संजीव चेतन ने बताया कि यह प्रशिक्षण उनके लिए एक नई दृष्टि लेकर आया है, जिससे वे शिक्षा को रोचक, जीवंत और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बना सकते हैं।
इस अवसर पर यह निर्णय लिया गया कि प्रशिक्षण में शामिल शिक्षकों द्वारा अपने विद्यालयों में कार्यशालाएं आयोजित की जाएंगी, ताकि अधिक से अधिक छात्र और शिक्षक लोक कलाओं के महत्व को समझ सकें। इसके साथ ही एससीईआरटी उत्तराखंड ने भविष्य में ऐसे कार्यक्रमों के आयोजन का आश्वासन दिया।
लोक चित्रकला प्रशिक्षण का यह चरण शिक्षकों और कला प्रेमियों के लिए एक प्रेरणादायक अनुभव साबित हुआ, जो शिक्षा और संस्कृति के गहरे समन्वय का उदाहरण प्रस्तुत करता है।