अध्ययन का परिप्रेक्ष्य:
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020), शिक्षा के अधिकार अधिनियम (RTE 2009), समग्र शिक्षा अभियान – सभी राष्ट्रीय दस्तावेज़ों में विद्यालय प्रबंधन समितियों को विद्यालय विकास की मूल इकाई के रूप में देखा गया है। SMC न केवल निगरानी संस्था है, बल्कि योजना निर्माण, क्रियान्वयन और मूल्यांकन तक की जिम्मेदारियों में इसकी भागीदारी सुनिश्चित की गई है।
समग्र शिक्षा अभियान के अंतर्गत, SMC को सशक्त बनाने के लिए उन्हें प्रशिक्षण देना नितांत आवश्यक हो गया है – ताकि वे बच्चों के अधिकारों, समावेशी शिक्षा, डिजिटल इनिशिएटिव्स, संरचनात्मक विकास, और वित्तीय प्रबंधन जैसे विषयों पर सक्षम निर्णय ले सकें।
शोध के उद्देश्य:
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SMC सदस्यों की समग्र शिक्षा के अंतर्गत विभिन्न हस्तक्षेपों (यथा गणवेष, पुस्तकालय, निर्माण, डिजिटल पहल) की जानकारी का मूल्यांकन।
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RTE-2009 के प्रावधानों और उनके व्यवहारिक उपयोग की समझ।
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बाल अधिकार, शिकायत निवारण प्रणाली, सामाजिक लेखा परीक्षा पर जानकारी की स्थिति।
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SMC की भूमिका, गठन प्रक्रिया और कार्यान्वयन की स्थिति का अध्ययन।
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समावेशी शिक्षा, विद्यालय सुरक्षा और साइबर सुरक्षा पर सदस्यों की जागरूकता का विश्लेषण।
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विद्यालय के भौतिक और वित्तीय संसाधनों के प्रबंधन में SMC की भागीदारी का मूल्यांकन।
शोध पद्धति (Methodology):
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समयावधि: प्रशिक्षण वर्ष 2018-19 से 2023-24 तक।
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स्थान: उत्तराखंड के 5 जिले – अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, उत्तरकाशी, देहरादून, हरिद्वार।
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3 जिले (अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, उत्तरकाशी) पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्र से।
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2 जिले (देहरादून, हरिद्वार) मैदानी क्षेत्र से।
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नमूना: 1020 विद्यालयों की SMC (520 दुर्गम, 500 सुगम क्षेत्र के स्कूल)।
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संकुल: कुल 273 संकुल शामिल (प्रदेश में कुल 675 संकुल)।
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डेटा संग्रहण: SMC अध्यक्ष, सदस्य, सचिव (प्रधानाध्यापक/प्रधानाचार्य), और एक शिक्षक सदस्य पर शोध उपकरण लागू किए गए।
मुख्य निष्कर्ष और अनुशंसाएँ:
यह अध्ययन बताता है कि क्लस्टर स्तरीय प्रशिक्षण से SMC सदस्यों की ज्ञान, भागीदारी, संवाद, और योजना निर्माण में स्पष्ट सकारात्मक बदलाव आए हैं। प्रशिक्षण ने अभिभावकों को विद्यालयीय प्रक्रिया का अभिन्न हिस्सा बनाया।
मुख्य सुझाव:
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नियमित प्रशिक्षण एवं फॉलोअप कार्यशालाएं सुनिश्चित की जाएं।
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राज्य/जिला स्तर पर अनुश्रवण प्रणाली को मज़बूत किया जाए।
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डिजिटल तकनीकों के प्रशिक्षण एवं स्कूलों में आईसीटी प्रणाली को बढ़ावा दिया जाए।
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आपदा प्रबंधन अभ्यास, बालिका शिक्षा और साइबर अपराध जैसे मुद्दों पर विशेष संवाद और जागरूकता अभियान चलाए जाएं।
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FLN और NIPUN भारत अभियानों में अभिभावकों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित हो।
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टोल-फ्री नंबर और शिकायत निवारण प्रणाली का प्रचार-प्रसार एवं प्रभावी क्रियान्वयन।
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हरिद्वार जैसे जिलों में विशेष हस्तक्षेप और सामुदायिक रणनीति अपनाई जाए।
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मॉडल जिले जैसे पिथौरागढ़, देहरादून की कार्यशैली का दस्तावेजीकरण कर अन्य जिलों में लागू किया जाए।
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शिक्षक संवाद, ड्रॉपआउट पुनः नामांकन और गुणवत्ता युक्त शिक्षा पर सतत योजना बनाई जाए।
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SMC प्रशिक्षण के अनुश्रवण एवं मूल्यांकन को संस्थागत रूप से लागू किया जाए।
नीतिगत महत्व:
यह शोध NEP 2020 के उस मूल दृष्टिकोण का समर्थन करता है जिसमें विद्यालयों को समुदाय-आधारित इकाई के रूप में विकसित करने की बात की गई है। यह अध्ययन शिक्षा प्रशासन, नीति निर्माताओं और प्रशिक्षण संस्थानों के लिए मार्गदर्शक हो सकता है।
आभार ज्ञापन:
इस शोध अध्ययन को सफलतापूर्वक संपन्न करने में योगदान देने वाले सभी व्यक्तियों व संस्थानों के प्रति सुनील भट्ट ने हार्दिक कृतज्ञता प्रकट की है। उन्होंने विशेष रूप से धन्यवाद ज्ञापित किया:
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बन्दना गर्व्याल – निदेशक, अकादमिक, शोध एवं प्रशिक्षण
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पदमेन्द्र सकलानी – अपर निदेशक, SCERT
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बंशीधर तिवारी – तत्कालीन राज्य परियोजना निदेशक
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डॉ मुकुल कुमार सती – वर्तमान निदेशक, माध्यमिक शिक्षा, जिन्होंने मार्गदर्शन, संसाधन और नीति समर्थन प्रदान किया।
यह अध्ययन एक स्पष्ट संदेश देता है – विद्यालयों में गुणवत्ता संवर्धन के लिए सामुदायिक सहभागिता और SMC सदस्यों की प्रभावी भागीदारी अनिवार्य है।
क्लस्टर स्तरीय प्रशिक्षण ने SMC को विद्यालयी सुधार की रीढ़ बनाया है। यदि इन प्रशिक्षणों का सतत अनुश्रवण किया जाए, तो उत्तराखंड राज्य शिक्षा के क्षेत्र में समावेशी, उत्तरदायी और सशक्त भविष्य की ओर तेज़ी से बढ़ सकता है।
आभार एवं धन्यवाद ज्ञापन
इस शोध अध्ययन को सफलतापूर्वक संपन्न करने हेतु मैं सर्वप्रथम अपनी गहन कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ दीप्ति सिंह , महानिदेशक विद्यालयी शिक्षा, उत्तराखंड के प्रति, जिनके प्रशासनिक सहयोग एवं मार्गदर्शन से यह कार्य सुचारु रूप से पूर्ण हो सका। साथ ही, मैं विशेष आभार प्रकट करता हूँ बन्दना गर्ब्याल, निदेशक, अकादमिक शोध एवं प्रशिक्षण, उत्तराखंड की दूरदर्शिता, सतत सहयोग और प्रेरणा के लिए, जिन्होंने इस शोध को दिशा प्रदान की।
इस अध्ययन में मार्गदर्शक के रूप में पदमेन्द्र सकलानी, अपर निदेशक, एवं डॉ. के. एन. बिजल्वाण, सहायक निदेशक, राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद, उत्तराखंड के अमूल्य सुझाव और सतत प्रेरणा के लिए मैं उनका विशेष आभारी हूँ। शोध अध्ययन के समन्वय, उपकरण निर्माण एवं परिष्करण कार्य में सुनील दत्त भट्ट तथा गोपाल घुगत्याल प्रवक्ता, राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद, उत्तराखंड ने अत्यंत प्रभावी भूमिका निभाई, जिनका मैं विशेष धन्यवाद करता हूँ।
साथ ही, मैं निम्नलिखित टूल निर्माण एवं परीक्षण टीम के सदस्यों के प्रति भी हार्दिक आभार प्रकट करता हूँ, जिन्होंने इस शोध के तकनीकी पक्ष को सशक्त बनाने में योगदान दिया:
डॉ दिनेश रतुड़ी , प्रवक्ता, एस.सी.ई.आर.टी., देहरादून
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डॉ. राकेश गैरोला , प्रवक्ता, एस.सी.ई.आर.टी., देहरादून
संजय भट्ट , प्रवक्ता डाइट बड़कोट उत्तरकाशी
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सुब्रा सिंघल, प्रवक्ता, एस.सी.ई.आर.टी., देहरादून
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प्रिया गुसाईं, प्रवक्ता, एस.सी.ई.आर.टी., देहरादून
अनुज्ञा पैन्यूली, प्रवक्ता, एस.सी.ई.आर.टी., देहरादून
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सुनीता बड़ोनी, प्रवक्ता, डायट देहरादून