उत्तराखण्ड में शिक्षा व स्वास्थ्य मंत्री ने बस्तारहित दिवस पर पुस्तिका का किया लोकार्पण
आज देहरादून में उत्तराखण्ड सरकार के शिक्षा एवं स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने दीप प्रज्वलन कर बस्तारहित दिवस पर आयोजित कार्यक्रम की शुरुआत की। इस अवसर पर उन्होंने प्रत्येक माह के अंतिम शनिवार को सभी विद्यालयों में आयोजित की जाने वाली शैक्षिक गतिविधियों पर आधारित संदर्शिका का विमोचन किया, जिसे एससीईआरटी की एनईपी सेल द्वारा विकसित किया गया है।
मंत्री जी ने कहा कि यह पुस्तिका राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप अनुभवात्मक और विद्यार्थी-केंद्रित शिक्षा को बढ़ावा देने हेतु एक महत्वपूर्ण पहल है।
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में रविनाथ रमन (सचिव, विद्यालयी शिक्षा), झरना कमठान (महानिदेशक, विद्यालयी शिक्षा), सीबीएसई के क्षेत्रीय निदेशक, संस्कृत शिक्षा सचिव, अजय नौडियाल (निदेशक, प्रारंभिक शिक्षा), मुकुल सती (निदेशक, माध्यमिक शिक्षा), आनंद भारद्वाज (निदेशक, संस्कृत शिक्षा), कुलदीप गैरोला (अपर परियोजना निदेशक, समग्र शिक्षा), पद्मेन्द्र सकलानी (अपर निदेशक, विद्यालयी शिक्षा), सभी जनपदों के मुख्य शिक्षा अधिकारी, खंड शिक्षा अधिकारी, डाइट प्राचार्य, विद्यालयों के प्रधानाचार्य, आईसीएसई स्कूलों के प्रतिनिधि एवं प्रेम कश्यप (पब्लिक स्कूल प्रतिनिधि) मौजूद रहे।
प्रदर्शनी और पुस्तिका विमोचन
कार्यक्रम की शुरुआत में महानिदेशक झरना कमठान ने मंत्री डॉ. धन सिंह रावत का पुष्पगुच्छ से स्वागत किया। इसके उपरांत बस्तारहित दिवस पर प्रदेशभर के विद्यालयों में किए गए नवाचारों पर आधारित एक सुंदर प्रदर्शनी आयोजित की गई, जिसमें विद्यार्थियों द्वारा बनाए गए मॉडल्स, गतिविधियाँ और रचनात्मक कृतियाँ शामिल थीं। मंत्री महोदय एवं उपस्थित अधिकारियों ने इस प्रदर्शनी का अवलोकन किया और छात्रों की सोच व नवाचार की सराहना की।
मंत्री जी का संदेश: बस्तारहित शिक्षा की ओर बढ़ते कदम
शिक्षा मंत्री डॉ. रावत ने अपने संबोधन में कहा कि यह पुस्तिका केवल एक संदर्शिका नहीं, बल्कि एक व्यापक योजना का हिस्सा है जिसके माध्यम से हर सप्ताह एक दिन बस्तारहित दिवस मनाया जाना चाहिए। उन्होंने सभी सरकारी एवं निजी विद्यालयों से इस दिवस को नियमित रूप से मनाने और इसमें उल्लिखित गतिविधियों को अपनाने का आग्रह किया। साथ ही, उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुसार विद्यार्थियों की आयु के आधार पर बस्ते के भार को सीमित करने के निर्देशों के अनुपालन पर बल दिया।
महानिदेशक डॉ. झरना कमठान ने
बस्तारहित दिवस के आयोजन पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि यह पहल बच्चों की समग्र शिक्षा और मानसिक स्वास्थ्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने कहा कि यह दिवस केवल स्कूल बैग के भार को कम करने का प्रयास नहीं है, बल्कि यह बच्चों की रचनात्मकता, सामाजिक सहभागिता, और अनुभव आधारित शिक्षा को बढ़ावा देने का एक सुनियोजित माध्यम है। उन्होंने इस अवसर पर
एससीईआरटी और
एनईपी सेल द्वारा विकसित संदर्शिका की सराहना की और कहा कि इसमें उल्लिखित गतिविधियाँ छात्रों की रुचियों और क्षमताओं के अनुकूल हैं, जिससे उनके व्यक्तित्व का बहुमुखी विकास संभव हो सकेगा। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि शासन द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुसार अब यह आवश्यक होगा कि सभी विद्यालय इस अवधारणा को नियमित रूप से अपनाएं और बच्चों के सर्वांगीण विकास में योगदान दें।
माध्यमिक शिक्षा निदेशक श्री मुकुल सती ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि —
“नई शैक्षिक पहलों के माध्यम से हमें विद्यार्थियों की रुचियों, क्षमताओं और भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए उन्हें सीखने के अधिक सशक्त अवसर प्रदान करने चाहिए। हमारा उद्देश्य ऐसी शिक्षण प्रणाली विकसित करना है जो केवल ज्ञान न दे, बल्कि विद्यार्थियों में जिज्ञासा, नवाचार और उत्तरदायित्व की भावना भी उत्पन्न करे।”
एनईपी सेल का योगदान और मंच संचालन

कार्यक्रम का संचालन मनोज किशोर बहुगुणा, एनईपी समन्वयक, ने अत्यंत सहज और प्रभावशाली ढंग से किया। उन्होंने बस्तारहित दिवस की संकल्पना, इसके उद्देश्यों और विद्यालयों में इसके क्रियान्वयन की विस्तृत प्रक्रिया पर प्रकाश डाला। अपने संबोधन में उन्होंने बताया कि किस प्रकार यह दिवस विद्यार्थियों के मानसिक, शारीरिक और सामाजिक विकास के लिए एक सशक्त मंच प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि एनईपी 2020 के अनुरूप यह प्रयास बच्चों को रटने के बजाय समझने, सोचने और करने की ओर प्रेरित करता है। मनोज बहुगुणा ने पुस्तिका में समाहित गतिविधियों की रचना प्रक्रिया, शिक्षकों और विशेषज्ञों की भूमिका, और विद्यालयों में उनके क्रियान्वयन के सुझावों को भी साझा किया। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि बस्तारहित दिवस केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक सतत शैक्षिक दृष्टिकोण है, जिसे प्रत्येक विद्यालय को अपनी वार्षिक योजना का हिस्सा बनाना चाहिए। उनके वक्तव्य ने उपस्थित सभी अधिकारियों, शिक्षकों और प्रतिभागियों को इस अवधारणा की गहराई और इसकी संभावनाओं को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
समग्र शिक्षा के अपर निदेशक कुलदीप गैरोला ने भी अपने विचार रखे एवं सभी प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया। “शिक्षा में गुणवत्ता और समावेशिता को सुनिश्चित करने के लिए हमें विद्यालय स्तर पर नवाचार और सहभागिता को प्रोत्साहित करना होगा। राज्य में चल रही योजनाओं और कार्यक्रमों का प्रभाव तभी सार्थक होगा जब हम जमीनी स्तर पर बच्चों की सीखने की प्रक्रिया को केंद्र में रखकर काम करें।”
आरबीएसके की वेबसाइट व डैशबोर्ड का अवलोकन
इस अवसर पर महानिदेशक झरना कमठान ने सचिव शिक्षा रविनाथ रामन का स्वागत पुष्पगुच्छ भेंट कर किया।
तत्पश्चात राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (RBSK) की निदेशक स्वाती एस भदौरिया ने राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत स्कूलों में स्वास्थ्य परीक्षण की जानकारी दी। बाल आरोग्य पोर्टल पर प्रत्येक छात्र का हेल्थ रिकॉर्ड दर्ज होगा। 148 स्वास्थ्य टीमें स्कूलों में जाकर छात्रों का स्वास्थ्य परीक्षण करेंगी।
नई वेबसाइट और डैशबोर्ड का भी अवलोकन किया गया। यह पहल भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत संचालित की जा रही है। इसके अंतर्गत 0 से 18 वर्ष के बच्चों में जन्मजात दोष, रोग, कुपोषण और विकास संबंधी विलंब की पहचान की जाती है तथा नि:शुल्क उपचार की व्यवस्था सुनिश्चित की जाती है। अधिकारियों ने इस मंच को बच्चों के समग्र स्वास्थ्य सुधार की दिशा में एक सराहनीय पहल बताया।
सम्मान समारोह व उच्च स्तरीय बैठक
कार्यक्रम के अंतिम चरण में अपर निदेशक पद्मेन्द्र सकलानी ने शिक्षा मंत्री डॉ. रावत एवं सचिव रविनाथ रामन को उच्च स्तरीय नीति बैठक हेतु आमंत्रित किया।
इस अवसर पर सहायक निदेशक डॉ. के. एन. बिजलवान ने पुस्तिका निर्माण में योगदान देने वाले वर्तमान मे अपर निदेशक गढ़वाल मण्डल कंचन देवराड़ी , एससीईआरटी एवं एनईपी सेल की टीम को मंच पर आमंत्रित किया, जहां मंत्री महोदय ने उन्हें सम्मानित किया और उनके कार्यों की सराहना की। अकादमिक निदेशक बंदना गर्ब्याल ने इस अवसर पर सभी को बधाई संदेश भेजकर गुणवत्ता शिक्षा के किए यह एक बड़ी पहल बताया ।
बैगलेस डे (बस्तारहित दिवस) एक अभिनव शैक्षिक पहल है जिसका उद्देश्य छात्रों को पारंपरिक कक्षा शिक्षण से हटाकर अनुभवात्मक, रचनात्मक और सामाजिक शिक्षा की ओर ले जाना है। इस विशेष दिन पर छात्र अपने भारी स्कूल बैग घर पर छोड़कर विभिन्न प्रकार की वैकल्पिक गतिविधियों में भाग लेते हैं, जैसे कला और शिल्प, विज्ञान प्रयोग, प्रकृति सैर, खेल, सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ, कहानी सुनना, जीवन कौशल कार्यशालाएँ और सामुदायिक सेवा।
यह दिवस न केवल छात्रों के शारीरिक और मानसिक तनाव को कम करता है, बल्कि उन्हें आत्म-अभिव्यक्ति, सहयोग, पर्यावरणीय चेतना और जीवन के व्यावहारिक पक्षों से भी जोड़ता है। हाल ही में आयोजित इस दिवस पर एक प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया, जिसमें उत्तराखंड राज्य के विभिन्न विद्यालयों के छात्रों और शिक्षकों ने अपनी रचनात्मकता और नवाचारों का प्रभावशाली प्रदर्शन किया। इस पहल को प्रदेश के शिक्षा मंत्री सहित अनेक वरिष्ठ अधिकारियों ने सराहा और इसे
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के उद्देश्यों के अनुरूप बताया।