विडिओ स्रोत : प्रिया गुसाईं , प्रवक्ता एस सी ई आर टी उत्तराखंड
उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल में बहने वाले नौले व धारे केवल जल के स्रोत नहीं, बल्कि वहां की संस्कृति, जीवनशैली और आत्मनिर्भरता के प्रतीक हैं। ये पारंपरिक जलस्रोत सदियों से पहाड़ों की बहुसंख्यक आबादी की प्यास बुझाते आए हैं। भूमिगत जल या वर्षा जल जब प्राकृतिक रूप से छनकर इन स्रोतों में आता है, तो यह जल न केवल शुद्ध और निर्दोष होता है, बल्कि इसमें औषधीय गुण भी पाए जाते हैं जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी होते हैं।
संकट में पारंपरिक जलस्रोत
लेकिन आज यह अमूल्य धरोहर संकट में है। भूमंडलीय तापवृद्धि, अनियंत्रित वनों की कटाई, अंधाधुंध निर्माण कार्य और मानवीय गतिविधियों के कारण नौले व धारे तेजी से सूख रहे हैं। जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय असंतुलन ने इन स्रोतों के अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। यह केवल जल संकट का संकेत नहीं, बल्कि एक पूरे जीवन तंत्र के टूटने की चेतावनी है।
घसाड़ के छात्रों की पर्यावरणीय चेतना
इसी संदर्भ में राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, घसाड़, जिला पिथौरागढ़ के छात्र-छात्राओं द्वारा पर्यावरण दिवस के अवसर पर किए गए प्रयास अत्यंत सराहनीय हैं। सीमांत क्षेत्र के इन बच्चों ने न केवल इन पारंपरिक जल स्रोतों की सफाई और मरम्मत का कार्य किया, बल्कि स्थानीय समुदाय को भी इनके संरक्षण के प्रति जागरूक किया।
उनका यह कार्य केवल एक सफाई अभियान नहीं, बल्कि एक संदेश है – “हम अपनी परंपराओं, प्रकृति और भविष्य को बचाने के लिए सजग हैं।” यह पर्यावरणीय चेतना का जीवंत उदाहरण है जो यह बताता है कि जब युवा जागरूक होते हैं, तो वे बड़े परिवर्तन की नींव रख सकते हैं।
आज जरूरत है कि हम सभी इस चेतना को आत्मसात करें और अपने-अपने स्तर पर पारंपरिक जलस्रोतों के संरक्षण का संकल्प लें। नौले और धारे केवल जल नहीं देते, वे हमें हमारी जड़ों से जोड़ते हैं। घसाड़ के छात्र-छात्राओं का यह प्रयास हम सभी के लिए प्रेरणा है कि कैसे छोटी पहल भी बड़े बदलाव की ओर ले जा सकती है।
आइए, मिलकर संकल्प लें – जल स्रोतों की रक्षा करेंगे, ताकि पर्वतों की आत्मा सदैव जीवित रहे।