देहरादून। उत्तराखण्ड राज्य में शिक्षा की गुणवत्ता को सुनिश्चित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल की जा रही है। राज्य के सभी सरकारी एवं निजी विद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए अब "राज्य विद्यालय मानक प्राधिकरण" के गठन की तैयारी चल रही है। यह प्राधिकरण विद्यालयों में बुनियादी सुविधाओं, शिक्षण-प्रशिक्षण, अधोसंरचना एवं शैक्षिक परिवेश के न्यूनतम मानकों को निर्धारित करेगा और उनके अनुपालन को सुनिश्चित करेगा।
प्राधिकरण का गठन क्यों आवश्यक है?
प्रदेश में निजी विद्यालयों द्वारा मनमानी फीस वसूली और बुनियादी सुविधाओं के अभाव की लगातार शिकायतें मिल रही थीं। इसे देखते हुए शिक्षा निदेशालय ने सीबीएसई, असम और पंजाब जैसे राज्यों में लागू प्राधिकरणों का अध्ययन करने के बाद शासन को एक प्रस्ताव भेजा है।
प्राधिकरण की संरचना एवं भूमिका
प्रस्तावित प्राधिकरण में अध्यक्ष और सदस्य के रूप में विशेषज्ञ शिक्षाविद्, प्रशासनिक अधिकारी, अधिवक्ता, अभिभावक प्रतिनिधि, तकनीकी विशेषज्ञ, चिकित्सा विशेषज्ञ तथा बाल मनोवैज्ञानिक जैसे अनुभवी लोग शामिल होंगे। यह प्राधिकरण एक अर्ध-न्यायिक निकाय के रूप में काम करेगा, जिससे यदि कोई विद्यालय मानकों का पालन नहीं करता है तो उसके खिलाफ विधिक कार्रवाई की जा सकेगी।
21897 विद्यालयों में होंगे न्यूनतम मानक लागू
प्रदेश के 16501 सरकारी और 5396 निजी विद्यालयों में यह न्यूनतम मानक सुनिश्चित किए जाएंगे। इससे बच्चों को बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य, खेल, स्वच्छता और सुरक्षा का माहौल मिल सकेगा।
एससीईआरटी उत्तराखण्ड की सक्रिय भूमिका
इस दिशा में राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट शासन को भेजी गई है। एससीईआरटी की टीम ने विभिन्न राज्यों के मॉडल का अध्ययन कर उत्तराखण्ड के संदर्भ में उपयुक्त प्रावधानों की रूपरेखा बनाई है।
एससीईआरटी उत्तराखण्ड के अपर निदेशक पदमेन्द्र सकलानी ने कहा:
"गुणवत्ता आधारित शिक्षा के लिए मानकीकरण एक अनिवार्य कदम है। राज्य विद्यालय मानक प्राधिकरण से न केवल विद्यालयों में आवश्यक सुविधाओं की सुनिश्चितता होगी, बल्कि इससे छात्रों का समग्र विकास भी संभव होगा। यह उत्तराखण्ड को शिक्षा की दिशा में एक नई पहचान देगा।"